क़ुतुब मीनार के इतिहास में बहुत सारे रोचक जानकारी है। क़ुतुब मीनार भारत का सबसे ऊँचा मीनार है। साथ ही क़ुतुब मीनार को दिल्ली का सबसे पुराना ईमारत भी है
क़ुतुब मीनार भारत का सबसे ऊँचा मीनार (स्तंभ) है। इसके साथ ही क़ुतुब मीनार को दिल्ली का सबसे पुराना ईमारत भी कहते है। क़ुतुब मीनार के इतिहास में बहुत सारे रोचक जानकारी है। जिसके बारे में आज मैं आपको बताऊँगा। क़ुतुब मीनार के निर्माण व इसके पीछे की वजहों के बारे में भी पता चलेगा।
भारत की राजधानी दिल्ली में इस्लामिक सभ्यता का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। इनके द्वारा दिल्ली में कई सारे ईमारत, किले, और महल बनवाये गए। जिसमे से एक क़ुतुब मीनार भी है। दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित यह क़ुतुब मीनार टूरिस्ट के लिए प्रसिद्ध होता जा रहा है। यहाँ आपको मंदिर, मस्जिद, और डरावने तहखाने भी देखने को मिलेंगे।
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क़ुतुब मीनार – क़ुतुब मीनार का इतिहास |
क़ुतुब मीनार के इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
क़ुतुब मीनार की ऊंचाई 73 मीटर है। जिसे भारत का सबसे ऊँचा मीनार माना जाता है। अगर हम ऊंचाई को कम्पयेर करें तो ताजमहल की ऊंचाई भी लगभग इतनी ही है। क़ुतुब मीनार की बाहरी दीवारों पर चारों और लाल बलुआ पत्थर से क़ुरान की आयतों को लिखा गया है। माना जाता था की क़ुरान की आयतों को ऐसे दीवारों पर लिखवाने से अल्लाह को याद करने में आसानी होती है।
दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित क़ुतुब मीनार एक तरफ़ा जंगलों से घिरा हुआ है। जो 1192 में पूरी तरह जंगलों के बीच में था। दिल्ली का महरौली तोमर और चौहान राजाओं की राजधानी थी। इन्ही राजाओं ने इस जगह पर वेदशालाओं, 27 मंदिरों, और तारा मंडलों को बनाया था। जो इस्लामिक सुल्तानों द्वारा तुड़वाया गया, और क़ुतुब मीनार का निर्माण करवाया गया। क़ुतुब मीनार के कई स्तंभों पर आप आज भी हिन्दू देवी, देवताओं की छवि देख सकते है।
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क़ुतुब मीनार – क़ुतुब मीनार का इतिहास |
इसके नाम पर भी कई बातें सामने आई जिसमे कुछ इतिहासकारों का यह मानना है कि क़ुतुब मीनार का नाम इसके संस्थापक क़ुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया। जबकि कुछ का मानना है कि बगदाद के सबसे प्रसिद्ध संत क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा। जो उन दिनों दिल्ली आया था, और इल्तुतमिश इसकी आदर करता था। उस संत के सम्मान में इस मीनार का नाम क़ुतुब मीनार रख दिया।
1981 से पहले ऊपर का नज़ारा देखने के लिए लोग आंतरिक सीढ़ियों के जरिये क़ुतुब मीनार के ऊपर जा सकते थे। एक दिन 4 दिसम्बर 1981 को सीढ़ियों की लाइट ख़राब होने के कारण मीनार के अंदर काला अँधेरा हो गया। जिससे अंदर के लोग घबरा कर तेज़ी से बाहर निकलने लगे। ऐसे में वहां भगदड़ मच गई और 45 लोगों की जान चली गई। इसके बाद मीनार को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया।
क़ुतुब मीनार परिसर में अल्लाऊद्दीन ख़िलजी ने मदरसा भी बनवाया हुआ था। जिसमे क़ुरान की आयतें, बीजगणित, प्रतियोगी गणित, और यूक्लिड को पढ़ाया जाता था। साथ ही इस मदरसे में यूनानी दवाइयों की पढाई भी की जाती थी।
क़ुतुब मीनार कब और किसने बनवाया ?
क़ुतुब मीनार का निर्माण दिल्ली के गुलाम वंश के पहले शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था। क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में क़ुतुब मीनार के निर्माण का कार्य शुरू करवाया था। लेकिन वो सिर्फ क़ुतुब मीनार का आधार बनवा पाए। बाद में दामाद इल्तुतमिश ने इसमें 3 मंजिलों को सन 1211 से 1236 में जोड़ा। उसके बाद 1363 में फिरोजशाह तुगलक ने पांचवे और आखरी मंजिल को बनवाया।
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क़ुतुबुद्दीन ऐबक – क़ुतुब मीनार का इतिहास |
1296 से 1316 के बीच अलाउद्दीन खिलजी ने कई सारे हिन्दू देवी, देवताओं के बचे मंदिरों को तुड़वाय पर यहाँ मदरसा, अलाई मीनार, और अलाई दरवाज़े का निर्माण करवाया। समय के साथ साथ इसमें कई सारे इस्लामिक सुलतान आते गए और क़ुतुब मीनार का विस्तार करते गए।
क़ुतुब मीनार क्यों बनवाया गया ?
अफगानिस्तान में मौजूद जाम की मीनार से प्रेरित हो कर व उसे भी बड़ा मीनार बनाने की चाह में कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार के निर्माण की योजना बनाई। क़ुतुब मीनार बनने के बाद इसका इस्तेमाल अज़ान करने, दूर से दुश्मनो पर नज़र रखने, व आस पास के जगहों ने निरिक्षण करने के लिए किया जाने लगा। शुरुआत में क़ुतुब कुतुबुद्दीन ऐबक इसका पहला मंजिल ही बनवा पाए थे। बाद में क़ुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश ने इस पर तीन मंजिलों को जोड़ दिया। जिससे क़ुतुब मीनार का ऊंचाई बढ़ गयी और इसे अज़ान के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा।
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जाम की मीनार – क़ुतुब मीनार का इतिहास | |
फिरोजशाह तुगलक द्वारा बनाये गए पांचवे और आखरी मंजिल से क़ुतुब मीनार की ऊंचाई और बढ़ गई। जिससे क़ुतुब मीनार के छत से दूर-दूर तक देखा जाने लगा। और इस तरह क़ुतुब मीनार को दूर से आ रहे दुश्मनों को देखने, और आस पास के जगहों के निरिक्षण करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा। क़ुतुब मीनार बनवाने का एक कारण इस्लाम की दिल्ली पर जीत भी माना जाता है।
कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का इतिहास
कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण कार्य भी क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1193 में हुआ। कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद सिर्फ चार वर्षों में ही बन चुका था। क्युकी इस जगह पहले हिन्दू वेदशाला हुआ करती थी, जिसको तोड़ कर इसे मस्जिद में तब्दील किया गया। लेकिन इसके बाद इल्तुतमिश ने 1230 में, और अल्लाऊद्दीन ख़िलजी ने 1351 में इस मस्जिद में अलाई दरवाजे जैसे कई हिस्से जोड़े। इस तरह कई शाषकों द्वारा इसका विस्तार होता गया। इस तरह क़ुतुब मीनार का इतिहास विवादित भी होता गया।
अलाई दरवाजा
अलाई दरवाजा, अल्लाऊद्दीन ख़िलजी द्वारा 1351 में बनाया गया। जो कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का एक भाग है। यह एक चौकोर गुम्बदाकार ईमारत है। इसके सभी दीवारों पर सफ़ेद संगमरमर और लाल पत्थर से बारीक़ नक्काशियां की गयी है।
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अलाई दरवाजा – क़ुतुब मीनार का इतिहास |
अलाई मीनार का इतिहास
अल्लाउद्दीन खिलजी बहुत आक्रामक और शक्तिशाली सुल्तान था। जिसने क़ुतुब मीनार को काफी तहस नहस किया। अल्लाउद्दीन खिलजी एक और मीनार बनवाना चाहते थे। जो क़ुतुब मीनार से दो गुना ऊँचा होना वाला था। जिसका नाम अलाई मीनार रखा गया। अलाई मीनार का निर्माण कार्य 1316 में शुरू किया। लेकिन यह कभी पूरा न हो सका। क्युकि जब अलाई मीनार का कार्य चल ही रहा था तब अल्लाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई। और फिर अलाई मीनार का निर्माण कार्य हमेशा के लिए रुक गया।
लौह स्तंभ का इतिहास
चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-413) की याद में यह लौह स्तंभ चौथे शताब्दी में बनाया गया था। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के नाम से भी जाने जाते है। इतिहासकार बताते है कि इस लौह स्तंभ को विष्णुपद नामक पर्वत पर भगवन विष्णु के ध्वज के लिए बनाया गया था। जो एक शक्तिशाली राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय की याद में बनाया गया था। इस लौह स्तंभ को गरुड़ ध्वज और विष्णु का स्तंभ भी कहा जाता है।
इस लौह स्तंभ को विष्णुपद पहाड़ी से लाने वाले तोमर राजा अनगपाल थे। राजा अनगपाल पहले ऐसे व्यक्ति माने जाते है, जो दिल्ली में पहली बार आए थे। दिल्ली शहर को बसाने का श्रेय भी इन्ही राजा अनगपाल को जाता है।
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लौह स्तंभ – क़ुतुब मीनार का इतिहास |
3 हज़ार किलो के इस लोहे के स्तंभ पर कभी जंग नहीं लगता है। क्युकि इस स्तंभ में 99% शुद्ध लोहे का इस्तेमाल किया गया है। 1600 साल पहले धातु की ऐसी पहचान काफी चौका देने वाला लगता है। इस लौह स्तंभ पर संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में एक अभिलेख जिसमे इस लौह स्तंभ के होने की वहज को लिखा गया है। दरसल क़ुतुब मीनार का इतिहास इसी लौह स्तंभ से समय से शुरू होता है।
सूर्य घड़ी का इतिहास
गॉर्डन सेंडरसन के याद में बनाई गयी यह सूर्य घडी क़ुतुब मीनार परिसर में मौजूद है। यह सूर्य घड़ी सफ़ेद संगमरमर की बनी हुई है। यह घड़ी सूर्य के प्रकाश में ही काम करता है। जैसे जैसे सूर्य की दिशा बदलती है वैसे वैसे इस घड़ी में समय बदलता है। इस सूर्य घड़ी पर लैटिन भाषा में एक पंक्ति भी लिखी हुई है। जिसका हिंदी में मतलब होता है “साया लुप्त हो जाता है, और प्रकाश वहीं रहता है।
क़ुतुब मीनार से जुड़ी रोचक बातें
क़ुतुब मीनार दिल्ली का सबसे पुराना ईमारत है। मतलब दिल्ली में इस से पहले कभी कोई किला या महल नहीं बना। क्युकि दिल्ली पर पहली बार राज करने वाले इस्लामिक शाषक क़ुतुबुद्दीन ऐबक माने जाते थे। जिन्होंने क़ुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।
कई लोगों का मानना है कि क़ुतुब मीनार पहले सात मंजिल का था, जिसमे ऊपर के दो मंजिल एयरप्लेन के टकराने से टूट गए। लेकिन यह सिर्फ एक अफवाह है। क़ुतुब मीनार पांच मंजिल का ही था, जो आज भी मौजूद है।
क्या आप जानते है ? क़ुतुब मीनार से पहले वहां तोमर राजा अनगपाल द्वारा बनाया गया मंदिर परिसर था। जिसको तोड़ कर क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार का निर्माण करवाया। बाद में अल्लाऊद्दीन ख़िलजी ने बाकि बचे हुए सभी हिन्दू मंदिरों और उनमे रखें मूर्तियों को तोड़ दिया। टूटे फूटे हिन्दू मंदिरों के निशान आज भी दिखाई देते हैं। और चन्द्रगुप्त द्वितीय की याद में बनाया गया लोहे का स्तंभ आज भी देखा जा सकता है।
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क़ुतुब मीनार का इतिहास |
अलाई मीनार को बनवाने वाले अल्लाऊद्दीन ख़िलजी का असली नाम जूना मोहम्मद खिलजी था। जो अपने चाचा जलालुद्दीन फ़िरोज़ ख़िलजी की हत्या करके राजगद्दी पर बैठे थे। अल्लाऊद्दीन ख़िलजी बहुत ही आक्रामक और बहुत ही ताकतवर राजा थे। इन्होने अपने शासन काल में बहुत बड़े बड़े योद्धाओं को हराया और दिल्ली पर भी शासन किया। इसके साथ ही दिल्ली में इन्होने काफी किले, महल, व मीनारें बनवाई। जिसमे क़ुतुब मीनार का भी थोड़ा सा एक हिस्सा है।
क़ुतुब मीनार परिसर में आप इल्तुतमिश का कब्र भी देख पाएंगे। इल्तुतमिश का मकबरा स्वयं इल्तुतमिश द्वारा ही बनवाया गया था। इतिहास में पहले बार किसी ने अपना कब्र खुद बनवाया था। इस मकबरे पर भी लाल पत्थरों से क़ुरान की आयतें को उभारा गया है। इल्तुतमिश का क़ुतुब मीनार को पूरा करने में बड़ा हाथ था।
चन्द्रगुप्त द्वितीय यानि विक्रमादित्य के नौ रत्नो में से एक रत्न तोमर राजा अनगपाल को दिल्ली का खोजकर्ता या फिर दिल्ली शहर को बसाने वाला माना जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
Q. क़ुतुब मीनार कहाँ स्थति है ?
क़ुतुब मीनार दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। क़ुतुब मीनार का पूरा एड्रेस है: सेठ सराय, मेहरौली, नई दिल्ली, दिल्ली 110030.
Q. क़ुतुब मीनार किसने बनाया था ?
क़ुतुब मीनार, गुलाम वंश के शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया। जिसमे इल्तुतमिश, और अल्लाऊद्दीन ख़िलजी का भी बड़ा योगदान था।
Q. क़ुतुब मीनार कब बना था ?
चौथी शताब्दी में तोमर राजा अनगपाल द्वारा बनाये गए वेदशाला, मंदिरों, और तारा मंडलों को 1192 में क़ुतुबुद्दीन ऐबक तुड़वाया गया और क़ुतुब मीनार का निर्माण शुरू करवाया गया। लेकिन समय के साथ साथ इसमें कई सुल्तानों ने अपना योगदान दिया और क़ुतुब मीनार का विस्तार किया।
Q. क़ुतुब मीनार क्यों बनाया गया था ?
क़ुतुब मीनार, अफगानिस्तान के जाम की मीनार से प्रेरित हो कर व उससे भी बड़ा मीनार बनाने की चाह में तुबुद्दीन ऐबक बनवाया गया। क़ुतुब मीनार के बनने के बाद इसको अज़ान देने, और दूर दुश्मनों पर नज़र रखने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। बाद में अल्लाउद्दीन खिलजी ने और आगे जाने की चाह में अलाई मीनार का निर्माण करवाया। लेकिन वह कभी पूरा नहीं हुआ।
Q. क़ुतुब मीनार का लौह स्तंभ किसने बनाया था ?
लौह स्तंभ, राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय यानि विक्रमादित्य की याद में विष्णुपद पर्वत पर बनाया गया था। जिसको तोमर राजा अनगपाल विष्णुपद पर्वत से दिल्ली लाए थे।